"पत्थर हुआ दिल जज़्बात खामोश हो गए"
पत्थर हुआ दिल, जज्बात खामोश हो गए ,
हम उनकी चाहत में डूबकर सुबहो शाम हो गए ।
आंसू बन गए दरिया ,
हम खुद को समझाते ही रह गए ।
वह भूलकर हमें , कितनो के दिलोजान हो गए ।
अब शब्दों की जगह खामोशी ने ले ली भले प्रज्ञा,
दर्द के बादलों में बहकते संभलते हम लहूलुहान हो गए।
कहानी अधूरी रह गई हमारी अनकही बातों की,
हमारी धड़कनों के बादल बरसने को तैयार हो गए।
पत्थर हुआ दिल, जज्बात खामोश हो गए
हम उनकी चाहत में डूबकर सुबहो शाम हो गए.....
प्रज्ञा राय